आदरणीय प्रभु प्रेमी !! जय श्री राधे !!
"नाम जप"ही समस्त भव रोगों की संजीवनी है। भगवान् सर्वकालीन होते हैं अर्थात् भूत, भविष्य और वर्तमान । इसलिए यदि भगवान् राजा परीक्षित की रक्षा करने उनकी मातृ गर्भ में आ सकते हैं तो अब क्यों नही? प्रह्लाद के लिए यदि खम्भे से प्रकट हो सकते हैं तो अब यदि देवकी के गर्भ की रक्षा कर सकते हैं तो इस समय की माताओं की क्यों नही? यदि सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी अर्जुन तक की रक्षा ब्रह्मास्त्र से कर सकते हैं,तो अब क्यों लोग भागे भागे फिरते हैं संकट में?
यदि देवकी के गर्भ की रक्षा कर सकते हैं तो इस समय की माताओं की क्यों नही? यदि सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी अर्जुन तक की रक्षा ब्रह्मास्त्र से कर सकते हैं,तो अब क्यों लोग भागे भागे फिरते हैं संकट में? तो एक ही जबाब है; सिर्फ 'भाव' और "विश्वास" का अभाव !!!! और जैसे ही कोई सद्गुरु भगवान् के उन नामों में हमारा विश्वास स्थापित कर देते हैं,बात बन जाती है। और मैं उसी "भाव" का दीपक लेकर निकला हूँ,जिसे चाहिए अपने अंधकार जीवन में रौशनी ,कृपया आईए! और भगवान् के "नामों"का आश्रय लीजिए: "नामोपचार" के माध्यम से।
वर्तमान कलि-कलुषित वातावरण में प्रायः सभी मनुष्य त्रिविध तापों (दैहिक-दैविक-भौतिक कष्टों )से ग्रसित रहते हैं किन्तु भगवान् की अहैतुक कृपा को न समझकर वह सांसारिक क्षणिक सहानुभूति और सांत्वना को ही इन समस्त दुखों से छूटने का उपाय समझ बैठते हैं और परिणाम स्वरुप तथाकथित ढोंगी -पाखंडियों के चंगुल में फंसकर अपना धन व समय दोनों ही गवां बैठते हैं |
एक बात समझने योग्य है --भगवान् की कृपा कभी भी बिकाऊ नहीं होती |कृपा तो हमेशा अकारण और अहैतुक ही होती है |संसार में बड़े से बड़े महापुरुष भी केवल सहायता कर सकते है अथवा आशीर्वाद दे सकते हैं किन्तु कृपा तो केवल भगवान् ही कर सकते हैं ,क्योंकि उनका नाम ही कृपासिंधु हैं |अतः भगवान् की कृपा ही हमें समस्त भवरोगों से रक्षा कर सकती है |इसलिए रामचरित मानस में स्पष्ट लिखा है :--"राम कृपा नासहिं सब रोगा |जौ एहि भाँति बनै संजोगा ||(7-121/5 )" पुनः भगवान् कहते हैं -बड़े -बड़ा कष्ट अथवा संकट को मिटाने का सामर्थ्य भी केवल भगवत्कृपा से ही संभव है |जैसे :--"जपहिं नामु जन आरत भारी|मिटहिं कुसंकट होंहि सुखारी || (1-21/5)"श्रीमद्भागवत महापुराण में भी स्पष्ट लिखा है :--स्वप्नो यथा ही प्रतिबोध आगते हरि स्मृतिः सर्वविपद विमोक्षनम" अर्थात् हरिनाम का स्मरण बड़े से बड़े विपत्ति का नाश कर देता है |
अब प्रश्न उठता है भगवान् की उस अहैतुकी कृपा को प्राप्त करने के लिये हम भगवान् के किस नाम का आश्रय लें ? भगवान् के तो अनन्तनाम हैं -'हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता' |तो इसमें संशय की कोई आवश्यकता नहीं है |जैसा आपका रोग है उसी के अनुसार शास्त्रों में भगवान् के विविध नाम दिए गए हैं | आप केवल अपनी सुविधानुसार उस विशेष नाम का चयन कर लीजिये |साधारणतः तीन प्रकार के ही रोग होते हैं तन का रोग ,मन का रोग अथवा धन का रोग |इन तीनों ही प्रकार के रोगों का उपशमन करने के लिए भगवान् के पृथक-पृथक नाम दिए गए हैं |आप केवल किसी महापुरुष को गुरु भाव से मानकर उस "नाम" को चुन लीजिये और अहर्निशी निरंतर मन ही मन जपते रहिये |नाम जपने के लिए किसी कर्मकाण्डकी आवश्यकता नहीं है| पूजा -पाठ,स्नान-ध्यान अथवा कोई विशेष विधि की कोई आवश्यकता नहीं है ,केवल नाम जप को स्वभाव बना लीजिये |इस अभ्यास को मात्र सात दिन करके देखिये ,आपको नाम जप का तत्काल चमत्कार दिखाई देगा |
भगवान् गीता में कहते हैं :- "मामनुस्मर युध्य च "अर्थात् नाम स्मरण के साथ -साथ अपना कर्तव्य कर्म भी करते रहें | किसी रोग उपचार के लिए यदि आप औषधि (दवाई ) ले रहे हैं तो दवाई के साथ-साथ नाम जप का अभ्यास निरंतर चलाते रहिये |आप स्वयं देखेंगे कुछ ही दिनों में आपकी दवाई हमेशा के लिए छुट जाएगी | मैंने अपने 25 वर्ष के शोध से भगवान् के उन विशिष्ट नामों को विभिन्न रोगों के उपचार के लिए छांटकर प्रस्तुत किया है जो इस प्रकार हैं :-
यह तो केवल कुछ उदाहरण मात्र ही हैं |इसी प्रकार व्यापार में वृद्धि हेतु ,किसी कलंक से बचने हेतु, खोई हुयी वस्तु की प्राप्ति हेतु ,गृह क्लेश निवारण हेतु ,गरीबी उन्मूलन हेतु ,किसी भी प्रकार के भय से निवारण हेतु ,विघ्न नाश हेतु ,परीक्षा में सफलता हेतु ,किसी भी प्रकार के शत्रुयों से रक्षा हेतु ,गृह निर्माण में बाधा निवारण हेतु अथवा किसी भी अन्य कामनायों की पूर्ति हेतु विभिन्न नाम दिए गये हैं | आप केवल किसी एक का चयन कर लीजिये और जुट जाईये अभीष्ट की प्राप्ति में |यह कोई कपोल-कल्पित नहीं अपितु पूर्णतः शास्त्र सम्मत है |आप स्वयं विचार कीजिये -अठारह हज़ार श्लोकों का गुणगान करने के पश्चात् परमहंस शुकदेवजी भी अंतिम श्लोक में नाम महिमा का ही वर्णन करते हैं |यथा :- ' नाम संकीर्तनम यस्य सर्व पाप प्रणाशनम ' |
मै शिविर के माध्यम से केवल हिन्दू समाज ही नहीं अपितु मानव मात्र को बताना चाहता हूँ कि हमारे शास्त्रों में समस्त समस्यायों का समाधान हमारे ऋषि-मुनियों ने कर दिया है ,केवल विश्वास के साथ उसका पालन करना चाहिए |वर्तमान समय में कुछ तथाकथित निर्मल दरबार जैसे लोग हिन्दू समाज को शास्त्रों से दूर पाखण्ड की बेड़ियों में जकड़ते जा रहे हैं |गोलगप्पे खाने से अथवा पेप्सी पीने से कृपा मिलेगी -इसप्रकार के हास्यास्पद और वेबुनियाद बातों से लोगों को सचेत करना हमारा परम कर्तव्य है | मै चाहता हू
आप अधिक से अधिक इस शिविर का प्रचार अपने माध्यम से करें जिससे भारतीय जन -मानस को न केवल समस्त रोग-शोक-और भय से बचा सकते हैं अपितु पाखंडियों के चंगुल से लोगों को बचाकर उनके मन में शाश्वत -सनातन धर्म के प्रति नवीन श्रद्धा -विश्वास उत्पन्न कर सकते हैं |
"अच्युतानंत गोविंद नामोच्चारण भेषजात् । नश्यन्ति सकला रोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहं ।।"
अर्थात् अच्युताय नमः,अनन्ताय नमः,गोविन्दाय नमः का निरंतर जप करने से हर प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।जब तक रोग न मिटे, श्रद्धापूर्वक जप करते रहना चाहिए। इस बात को स्वयं गोवर्धन पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी श्रीनिरंजन देव तीर्थजी महाराज ने स्वीकार किया, जिसे कल्याण पत्रिका ने अपने 89 वर्ष के 12 वें अंक में पृष्ठ संख्या 12 पर छापा था।
It is a universally accepted truth that the universe has been created by God Himself. God does not want that any creature in his creation should suffer, but God has given complete freedom to all human beings. If he did not do so, then God would have been accused of being ruthless, autocratic and cruel.
That is why God has given complete freedom to every living being to act, for which we have given this human body consisting of ten senses and four consciences. At the same time, the Lord, because of the absence of desire, does not act himself, but only by being a non-doer himself, guides the entire universe.
That is why God, being inactive, urges every living being that someone should expect him to praise his name, for his own protection. For this, God has made provision for different methods in different eras.
“Whatever is achieved by meditation in Satya-yuga, by the performance of sacrifice in Treta-yuga, and by the worship of Lord Krsna’s lotus feet in Dvapara-yuga is obtained in the Age of Kali simply by glorifying the name of Lord Keshava.”
According to the scriptures, in Kaliyuga only the method of chanting has been approved by God. Therefore, if we take shelter of his name as it is, then that name removes all our diseases, sorrows and fears because by chanting the name, a kind of electromagnetic energy is generated , which can be absorbed by water or other Panchmahabhutas (Five Great Elements) in the atmosphere.
As this Panchmahabhuta (Five Great Elements) is present both inside and outside the body, this electromagnetic energy generated by the chanting is able to treat all diseases, sorrows, fears and obstacles of the body. Body becomes completely healthy due to this electro magnetic effect of chanting . This is what has been called as Naam Upchar Different names of lord Krishna have been provided for different diseases or for the fulfillment of desires. We are doing the work of selecting only those NAMES from the scriptures and bringing them to you.
It is mandatory to Start chanting naam mantra after listening from a spiritual master. The effect of Naam Mantra should always be obtained only by listening from the mouth of a spiritual master . Many people request us to tell the name mantra or to send the book of the name mantra. But seeing and chanting by oneself without actually listening from spiritual master does not yield direct results. Therefore, to get this Gurmukhi, you have to send Mahamantra only 540 times in the form of Dakshina. This is a completely free service.Let us understand with an example- two women met Shri Ram in Aranya Kand; One is Surpanakha and the other is Shabri .
Shabari got the teachings of Navadha Bhakti while Soorpanakha had to be beheaded. Both of them were blessed to see Shri Ram, then why there was such a difference? This is Because Shabri followed order of Guru (Sage Matang) whereas Soorpanakha had never followed any spiritual master . Therefore, start chanting only after listening from a Bhajananandi Siddha (Bona fide) Guru.